कैसे थे कभी हमने सोचा है शायद ज़रुरत नहीं समझी या समझने की आवश्यकता ही क्या है जब सब कुछ अच्छा तो चल रहा है क्या सोचें और क्यों ,हम तो ये जानते हैं की मुझे ऊपर वाले ने बनाया है बस जीवन मिल गया है जीते जाओ सलीका कोई भी हो ,जब हम मानव ने धरती पर जन्म लिया तो हमारे पास ना किताबे थी और ना ही आस पास समाज था तो हमारे में समझने की शक्ति कहा से आयी ,इसका सीधा सा जवाब है की हमने सब कुछ देख कर ,सुन कर,और महसूस करके सीखा तो आज जब की हमारे पास सब कुछ है ,तो क्या हमारा व्यवहार या सलीका अच्छा नहीं होना चाहिए ,लोग क्यों नहीं समझते हैं I आप रास्ते पर चलते हुए दूसरोँ का ध्यान नहीं रखते हॉर्न तो जैसे बजाना इतना जरूरी है की उसके बिना काम ही नहीं चलता ,ना किसी की परवाह करना बे वजह बस ध्वनि करते चले जा रहे हैं I आखिर आप ने कभी सोचा है की इस प्रकार के व्यवहार से दूसरों को कितनी तकलीफ पहुँचती है जब आप रास्ते पर जा रहे होते हैं तो कभी आस -पास देखा की स्कूल या हॉस्पिटल तो नहीं है ,आप सोचिये की उस स्कूल में आप के बच्चे हैं और उस हॉस्पिटल में आप के माँ बाप भरती हैं तब आप को कैसा महसूस होगा I देश की शिक्षा व्यवस्था में एक विषय के रूप में बच्चों को शिक्षा दी जाती है लेकिन इस विषय की विषय वस्तु को आत्मसार करने पर बल देना होगा I मैंने इन बातोँ को महसूस किया है शायद इसीलिए मैं ये लिख रहा हूँ , बस अगर सभी इसे समझ सकें और अपने बच्चों को सिखा सकें तो शायद इसमें कुछ सुधार हो सकता है I मैं समझता हूँ की यदी कुछ लोगों में भी परिवर्तन आता है तो मेरा लिखना सार्थक हो जायेगा I
संपादक
( पंकज श्रीवास्तव)